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क्षणिक जीवन

क्षण बड़ा निर्दयी होता है
मौत की आगोश में सोता है
अपने ही दम पर जीता है
अपने ही दम पर मरता है

जो जी ले हर क्षण को
क्षण उसका ही होता है
हर क्षण जीने की हौसला
कहाँ हर जन में होता है

जी लो जी भर जिंदगी
क्यों क्षणिक गमों को रोता है
क्षण भंगुर है जीवन तेरा
क्यों इतने सपने संजोता है

क्षणों में टूटा हर सपना
क्यों टूटे शीशे बटोरता है
जी ले संग अपनो के
क्यों बांह गैरों की टटोलता है

क्षण में उड़ते प्राण पखेरू
कर्म सफल कर लो अपने
कुछ ना जाएगा संग तेरे
यहीं रह जाएंगे सारे सपने

हर क्षण बड़ा अनमोल है
इसका ना कोई तौल है
बना ले सद्व्यवहार सबसे
यही "मुकेश" के अंतर बोल है


स्वरचित :- मुकेश राठौड़

दस्तक मौत की

दस्तक मौत की आने लगी अब
उम्र भी लड़खड़ाने लगी अब
साथ तेरा खोकर सहारो की आस
इस दिल को तड़पाने लगी अब
दस्तक मौत की आने लगी अब....
जन्म से आज तक
वो साथ मेरे चलती रही
मैं सोचता था जी रहा
पर वो मेरे लिए मरती रही
जी हाँ वो श्वांस मेरी
जो हरपल हरदम साथ मेरे चलती रही
मैं इतराता अपने स्वरूप पर
पर वो हरदम मेरे सीने में धड़कती रही
मेरे हर गम में
साथ मेरे रोती रही
मेरी हर खुशी में
साथ मेरे हंसती रही
बन खिलौना जीवन का
साथ मेरे रमती रही
जब आई तरूणाई
वो और तेज गति से चलती रही
उम्र के इस ढलान पर भी
इस जड़ तन का बोझ ढोती रही
अब अंत समय आया
वो द्वार पर बैठ कर रोती रही
सज रही अर्थी जब
सबकी आंखों को डबडबाती रही
जी हां वो श्वांस ही थी
जो आज तक साथ मेरा निभाती रही
अब ये तन सिर्फ माटी है
मेरी जान मेरी श्वांस अब जाती रही
हर दम हर पल साथ मेरा निभाती रही

स्वरचित :- मुकेश राठौड़

शरद ऋतु

ऋतु शरद मन मोहिनी
मम मन हरषाये,
कान्हा की सांवली सूरत,
प्रीत उमंग जगाये,

निशा शरद पूनम की धौली
रास रचाऊं सांवरे कान्हा संग,
जाकर संग गोपीयों के,
मन में भरे उल्लास के रंग

प्रकृति भी मनमोहक छटा
बिखरे ऋतु शरद में अपनी,
धुन बंशी की सुनकर,
महक उठे मस्ती में अपनी

फूले कलियां भंवरे गाए
धुन बंशी की सबको लुभाये,
पशु पक्षी भी दौड़े आए
संग कान्हा के मन बहलाये

मंद मंद पवन के झोंकों से,
प्रकृति नव यौवन पर ईठलाये,
मधुर मधुर कलरव से,
मधुवन को चहकाए,

सरीता बहे सर सर सर
झरने झरे झर झर झर
वन कानन भरे सुर
बहे पवन सर सर सर

स्वरचित :- मुकेश राठौड़

हमसफर

सफर जिंदगी का
जब साथ हमसफर हो
हर गम भूला दे
ऐसा हमसफर हो

ऐसा हमसफर है पाया
कोरा कागज था जीवन
रंगीन फूलों से सजाया
साथ हरदम हरकदम
बन अंधेरों में भी साया

जीवन के हर पढ़ाव पर
संघर्ष के हर चढ़ाव पर
देकर साथ मेरा
जीवन है महकाया
ऐसा हमसफर है पाया

थोड़ी तकरार से
थोड़े प्यार से
हरपल को सजाया
हर एक गम भूलाया
ऐसा हमसफर है पाया

कभी धूप कभी छाया
अनमोल है प्रीत की माया
मेरी हर सांस में
नाम तेरा ही आया
ऐसा हमसफर है पाया

स्वरचित :- मुकेश राठौड़

माटी है अनमोल

है अनमोल माटी
प्राणी मात्र की मां है माटी
इसमें उपजे अन्न खनिज
है औषधीय भंडार माटी

किसान उपजाए अन्न धन
चिर मेहनत से माटी
भूख शांत हो जन जन
है अनमोल माटी

प्रकृति पले इस पर
है प्रभू वरदान माटी
पंचतत्व का आधार ये,
है अनमोल माटी

इस माटी में जन्मे राम कृष्ण,
दिया मर्यादा और गीता का ज्ञान,
इस माटी में जन्मे अशफाक,भगत
दिया आजादी को मान,

नमन करूँ इस माटी को,
जिस पर मैंने जनम लिया,
आज समय अंतिम आया,
तब भी इसने शरण लिया,

स्वरचित :- मुकेश राठौड़

क्षणिक जीवन

क्षण बड़ा निर्दयी होता है मौत की आगोश में सोता है अपने ही दम पर जीता है अपने ही दम पर मरता है जो जी ले हर क्षण को क्षण उसका ही होता है...

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