tag:blogger.com,1999:blog-46570363725672747932024-02-08T05:26:43.602-08:00मुकेश राठौड़Poetryrathodmukesh143@blogspot. comhttp://www.blogger.com/profile/04207178796796097295noreply@blogger.comBlogger14125tag:blogger.com,1999:blog-4657036372567274793.post-36170008280056633872018-10-28T23:17:00.000-07:002018-10-28T23:17:22.616-07:00क्षणिक जीवन<div dir="ltr" style="text-align: left;" trbidi="on">
क्षण बड़ा निर्दयी होता है<br />
मौत की आगोश में सोता है<br />
अपने ही दम पर जीता है<br />
अपने ही दम पर मरता है<br />
<br />
जो जी ले हर क्षण को<br />
क्षण उसका ही होता है<br />
हर क्षण जीने की हौसला<br />
कहाँ हर जन में होता है<br />
<br />
जी लो जी भर जिंदगी<br />
क्यों क्षणिक गमों को रोता है<br />
क्षण भंगुर है जीवन तेरा<br />
क्यों इतने सपने संजोता है<br />
<br />
क्षणों में टूटा हर सपना<br />
क्यों टूटे शीशे बटोरता है<br />
जी ले संग अपनो के<br />
क्यों बांह गैरों की टटोलता है<br />
<br />
क्षण में उड़ते प्राण पखेरू<br />
कर्म सफल कर लो अपने<br />
कुछ ना जाएगा संग तेरे<br />
यहीं रह जाएंगे सारे सपने<br />
<br />
हर क्षण बड़ा अनमोल है<br />
इसका ना कोई तौल है<br />
बना ले सद्व्यवहार सबसे<br />
यही "मुकेश" के अंतर बोल है<br />
<br />
<br />
स्वरचित :- मुकेश राठौड़</div>
rathodmukesh143@blogspot. comhttp://www.blogger.com/profile/04207178796796097295noreply@blogger.com0tag:blogger.com,1999:blog-4657036372567274793.post-19836731725292831832018-10-24T22:01:00.001-07:002018-10-24T22:01:26.755-07:00दस्तक मौत की<div dir="ltr" style="text-align: left;" trbidi="on">
दस्तक मौत की आने लगी अब<br />
उम्र भी लड़खड़ाने लगी अब<br />
साथ तेरा खोकर सहारो की आस<br />
इस दिल को तड़पाने लगी अब<br />
दस्तक मौत की आने लगी अब....<br />
जन्म से आज तक<br />
वो साथ मेरे चलती रही<br />
मैं सोचता था जी रहा<br />
पर वो मेरे लिए मरती रही<br />
जी हाँ वो श्वांस मेरी<br />
जो हरपल हरदम साथ मेरे चलती रही<br />
मैं इतराता अपने स्वरूप पर<br />
पर वो हरदम मेरे सीने में धड़कती रही<br />
मेरे हर गम में<br />
साथ मेरे रोती रही<br />
मेरी हर खुशी में<br />
साथ मेरे हंसती रही<br />
बन खिलौना जीवन का<br />
साथ मेरे रमती रही<br />
जब आई तरूणाई<br />
वो और तेज गति से चलती रही<br />
उम्र के इस ढलान पर भी<br />
इस जड़ तन का बोझ ढोती रही<br />
अब अंत समय आया<br />
वो द्वार पर बैठ कर रोती रही<br />
सज रही अर्थी जब<br />
सबकी आंखों को डबडबाती रही<br />
जी हां वो श्वांस ही थी<br />
जो आज तक साथ मेरा निभाती रही<br />
अब ये तन सिर्फ माटी है<br />
मेरी जान मेरी श्वांस अब जाती रही<br />
हर दम हर पल साथ मेरा निभाती रही<br />
<br />
स्वरचित :- मुकेश राठौड़</div>
rathodmukesh143@blogspot. comhttp://www.blogger.com/profile/04207178796796097295noreply@blogger.com0tag:blogger.com,1999:blog-4657036372567274793.post-89606861361404455332018-10-06T06:39:00.000-07:002018-10-06T06:39:27.613-07:00शरद ऋतु<div dir="ltr" style="text-align: left;" trbidi="on">
ऋतु शरद मन मोहिनी<br />
मम मन हरषाये,<br />
कान्हा की सांवली सूरत,<br />
प्रीत उमंग जगाये,<br />
<br />
निशा शरद पूनम की धौली<br />
रास रचाऊं सांवरे कान्हा संग,<br />
जाकर संग गोपीयों के,<br />
मन में भरे उल्लास के रंग<br />
<br />
प्रकृति भी मनमोहक छटा<br />
बिखरे ऋतु शरद में अपनी,<br />
धुन बंशी की सुनकर,<br />
महक उठे मस्ती में अपनी<br />
<br />
फूले कलियां भंवरे गाए<br />
धुन बंशी की सबको लुभाये,<br />
पशु पक्षी भी दौड़े आए<br />
संग कान्हा के मन बहलाये<br />
<br />
मंद मंद पवन के झोंकों से,<br />
प्रकृति नव यौवन पर ईठलाये,<br />
मधुर मधुर कलरव से,<br />
मधुवन को चहकाए,<br />
<br />
सरीता बहे सर सर सर<br />
झरने झरे झर झर झर<br />
वन कानन भरे सुर<br />
बहे पवन सर सर सर<br />
<br />
स्वरचित :- मुकेश राठौड़</div>
rathodmukesh143@blogspot. comhttp://www.blogger.com/profile/04207178796796097295noreply@blogger.com0tag:blogger.com,1999:blog-4657036372567274793.post-21675241027740870202018-10-05T07:11:00.003-07:002018-10-05T07:11:56.927-07:00हमसफर<div dir="ltr" style="text-align: left;" trbidi="on">
सफर जिंदगी का<br />
जब साथ हमसफर हो<br />
हर गम भूला दे<br />
ऐसा हमसफर हो<br />
<br />
ऐसा हमसफर है पाया<br />
कोरा कागज था जीवन<br />
रंगीन फूलों से सजाया<br />
साथ हरदम हरकदम<br />
बन अंधेरों में भी साया<br />
<br />
जीवन के हर पढ़ाव पर<br />
संघर्ष के हर चढ़ाव पर<br />
देकर साथ मेरा<br />
जीवन है महकाया<br />
ऐसा हमसफर है पाया<br />
<br />
थोड़ी तकरार से<br />
थोड़े प्यार से<br />
हरपल को सजाया<br />
हर एक गम भूलाया<br />
ऐसा हमसफर है पाया<br />
<br />
कभी धूप कभी छाया<br />
अनमोल है प्रीत की माया<br />
मेरी हर सांस में<br />
नाम तेरा ही आया<br />
ऐसा हमसफर है पाया<br />
<br />
स्वरचित :- मुकेश राठौड़</div>
rathodmukesh143@blogspot. comhttp://www.blogger.com/profile/04207178796796097295noreply@blogger.com0tag:blogger.com,1999:blog-4657036372567274793.post-54363418935314618862018-10-03T04:25:00.000-07:002018-10-03T04:25:16.820-07:00माटी है अनमोल<div dir="ltr" style="text-align: left;" trbidi="on">
है अनमोल माटी<br />
प्राणी मात्र की मां है माटी<br />
इसमें उपजे अन्न खनिज<br />
है औषधीय भंडार माटी<br />
<br />
किसान उपजाए अन्न धन<br />
चिर मेहनत से माटी<br />
भूख शांत हो जन जन<br />
है अनमोल माटी<br />
<br />
प्रकृति पले इस पर<br />
है प्रभू वरदान माटी<br />
पंचतत्व का आधार ये,<br />
है अनमोल माटी<br />
<br />
इस माटी में जन्मे राम कृष्ण,<br />
दिया मर्यादा और गीता का ज्ञान,<br />
इस माटी में जन्मे अशफाक,भगत<br />
दिया आजादी को मान,<br />
<br />
नमन करूँ इस माटी को,<br />
जिस पर मैंने जनम लिया,<br />
आज समय अंतिम आया,<br />
तब भी इसने शरण लिया,<br />
<br />
स्वरचित :- मुकेश राठौड़</div>
rathodmukesh143@blogspot. comhttp://www.blogger.com/profile/04207178796796097295noreply@blogger.com0tag:blogger.com,1999:blog-4657036372567274793.post-45529654485113140642018-09-28T09:01:00.003-07:002018-11-24T03:18:07.514-08:00आदर्श<div dir="ltr" style="text-align: left;" trbidi="on">
त्रस्त हूँ समाज के खोखले आदर्शों से,<br />
<br />
छूत अछूत के पाखंडो से,<br />
जात धर्मों के झगड़ों से,<br />
<br />
त्रस्त हूँ समाज के खोखले आदर्शों से,<br />
<br />
रोज हो रहे बलात्कारों से,<br />
हो रहे नारी पर घरेलू हिंसाओं से,<br />
<br />
त्रस्त हूँ समाज के खोखले आदर्शों से,<br />
<br />
रोज बिलखती भ्रूणों की चित्कारों से,<br />
दहेज की आग में जलती चिताओं के अंगारों से,<br />
<br />
त्रस्त हूँ समाज के खोखले आदर्शों से,<br />
<br />
घर परिवार के झगड़ो से,<br />
हो रहे भाई भाई के बंटवारों से,<br />
<br />
त्रस्त हूँ समाज के खोखले आदर्शों से,<br />
<br />
स्वरचित :- मुकेश राठौड़</div>
rathodmukesh143@blogspot. comhttp://www.blogger.com/profile/04207178796796097295noreply@blogger.com1tag:blogger.com,1999:blog-4657036372567274793.post-31793754123068330682018-09-26T06:05:00.000-07:002018-09-26T23:42:40.418-07:00आगमन की आस <div dir="ltr" style="text-align: left;" trbidi="on">
है आगमन की आस तेरे,<br />
कब आओगी पास मेरे,<br />
नैन तरसे दरश को तेरे,<br />
कब आओगी पास मेरे,<br />
चौका सूना बिन तेरे,<br />
तके आगमन की राह तेरे,<br />
घर मंदिर के कंगूरे,<br />
पड़ोसी भी पूछ पूछ हारे,<br />
क्या दूं उनको जवाब मेरे,<br />
है आगमन की आस तेरे,<br />
कब आओगी पास मेरे<br />
घर आंगन सूना बिन तेरे,<br />
बहुत रह लिए अब मां के डेरे,<br />
आ आ जाओ अब पास मेरे,<br />
है आगमन की आस तेरे,<br />
थक चूका हूं कर घर काम तेरे,<br />
अब तो रोम रोम तुझे पुकारे,<br />
है अआगमन की आस तेरे,<br />
आ जाओ अब पास मेरे,<br />
सांझ ढले जब घर को जाऊं,<br />
हर कोना मुझे चिढ़ाये,<br />
हर पल तेरी याद सताये,<br />
लेखन में फिर मन बहलायें,<br />
लेखन में फिर इतने रम गये,<br />
याद में तेरी हम कवि बन गये,<br />
पर हर लेख अधूरे बिन तेरे,<br />
अब तो दिन महीने बीत गये,<br />
अब तो आ जाओ पास मेरे,<br />
है आगमन की आस तेरे,<br />
<br />
स्वरचित :- मुकेश राठौड़</div>
rathodmukesh143@blogspot. comhttp://www.blogger.com/profile/04207178796796097295noreply@blogger.com0tag:blogger.com,1999:blog-4657036372567274793.post-55988694228657027892018-09-26T02:18:00.001-07:002018-09-26T23:42:40.430-07:00तृष्णा<p dir="ltr">जाने कौन तृष्णा थी मन की<br>
मंत्र मुग्ध हुआ तुम्हें पाकर<br>
जीवन सुशोभित किया मेरा<br>
जीवन संगिनी बनकर,<br>
सदियों से था प्रतिक्षीत जीवन,<br>
तृप्त कर दिया तुमने आकर</p>
<p dir="ltr">भर अश्रुधारा नयनन में,<br>
प्रवेश किया इस जीवन में,<br>
भ्रम के अंधियारे थे जीवन में<br>
दूर हुए अब भ्रम के अंधियारे,<br>
सास्वत साथ तुम्हारा पाकर</p>
<p dir="ltr">साथ अपना देकर मन को<br>
तृप्त कर दिया तुमने आकर<br>
सदा रहो मेरे अंतर्मन में<br>
तुमसे ही प्रीत है जीवन में<br>
हुआ धन्य जीवन तुमको पाकर</p>
<p dir="ltr">जब आयी तुम मेरे जीवन में<br>
गूंज उठी दशों दिशाएं,<br>
भर आये रंग चमन में,<br>
जब तक सांस है मेरे इस तन में<br>
सदा रहूंगा साथ इस जीवन में</p>
<p dir="ltr"> स्वरचित :- मुकेश राठौड़</p>
rathodmukesh143@blogspot. comhttp://www.blogger.com/profile/04207178796796097295noreply@blogger.com2tag:blogger.com,1999:blog-4657036372567274793.post-4883131981871753022018-09-25T08:45:00.001-07:002018-09-26T23:42:40.425-07:00परिवर्तन<p dir="ltr">क्या परिवर्तन हुआ है कल में और आज में,</p>
<p dir="ltr">कल भी नारी जलती थी सति प्रथा की आग में,<br>
आज भी नारी जलती है दहेज प्रथा की आग में,</p>
<p dir="ltr">क्या परिवर्तन हुआ है कल में और आज में,</p>
<p dir="ltr">कल भी युद्ध होते थे सत्ता की चाह में,<br>
आज भी लड़ते है लोग सत्ता की चाह में,</p>
<p dir="ltr">क्या परिवर्तन हुआ है कल में और आज में,</p>
<p dir="ltr">कल भी होता था चिर हरण भरे दरबार में<br>
आज भी होता है वस्त्र हरण बीच बाजार में,</p>
<p dir="ltr">क्या परिवर्तन हुआ है कल में और आज में,</p>
<p dir="ltr">स्वरचित :- मुकेश राठौड़</p>
rathodmukesh143@blogspot. comhttp://www.blogger.com/profile/04207178796796097295noreply@blogger.com0tag:blogger.com,1999:blog-4657036372567274793.post-38145624343723710562018-09-25T05:46:00.001-07:002018-09-26T23:42:40.423-07:00शहीद<p dir="ltr">मां देख तेरा लाल आया है,<br>
तेरा बेटा आज देश के काम आया है,</p>
<p dir="ltr">तु न कहती थी कि दूध न लजाना,<br>
देख आज तिरंगा भी साथ लाया है,</p>
<p dir="ltr">मां देख तेरा लाल आया है,</p>
<p dir="ltr">दुश्मन को सामने देखकर तेरा ही खयाल आया है,<br>
फिर वंदे मातरम कहकर ये जुनून आया है,</p>
<p dir="ltr">मां देख तेरा लाल आया है,</p>
<p dir="ltr">कोई कहता है क्या सुबूत लाया है,<br>
दुश्मन का सर काटकर अपने साथ लाया है,</p>
<p dir="ltr">मां देख तेरा लाल आया है,</p>
<p dir="ltr">तिरंगे की शान में ये पैगाम लाया है,<br>
तेरा बेटा आज देश के काम आया है,</p>
<p dir="ltr">मां देख तेरा लाल आया है,</p>
<p dir="ltr">एक जवान शहीद हो गया है,<br>
संवेदना के बीज बो गया है,</p>
<p dir="ltr"> मां देख तेरा लाल आया है</p>
<p dir="ltr">होकर शहीद वतन की खातिर तेरे अंगना आया है,<br>
शहादत को बना आभूषण मुस्कुराता भाल लाया है</p>
<p dir="ltr">मां देख तेरा लाल आया है,</p>
<p dir="ltr">तेरा बेटा शहीद हुआ ये शोक न करना,<br>
रंज इतना है बुढ़ापे मे तेरे काम ना आया,</p>
<p dir="ltr">मा देख तेरा लाल आया है</p>
<p dir="ltr"> होकर शहीद मातृभूमि का कर चुकाया है,</p>
<p dir="ltr">स्वरचित:-मुकेश राठौड़</p>
rathodmukesh143@blogspot. comhttp://www.blogger.com/profile/04207178796796097295noreply@blogger.com0tag:blogger.com,1999:blog-4657036372567274793.post-16400696330912134922018-09-25T00:29:00.001-07:002018-09-26T23:42:40.411-07:00दीपक<p dir="ltr">घोर अंधकार हो<br>
चल रही बयार हो<br>
आज द्वार द्वार पर <br>
यह दिया बुझे नहीं.....</p>
<p dir="ltr">अनगिनत बलिदानों से सजा<br>
स्वतंत्रता का यह दिया,<br>
लो प्रण हर पल यही<br>
यह दिया बुझे नहीं....</p>
<p dir="ltr">आँधियाँ उठा रहीं, <br>
हलचलें मचा रहीं,<br>
दूर अंधकार हो,<br>
ना कोई क्लेश हो,<br>
क्षुद्र जीत हार पर,<br>
यह दिया बुझे नहीं.....</p>
<p dir="ltr">यह दिया स्वतंत्रता का<br>
शहीदों के खून से जला<br>
नेताओं ने खूब छला,<br>
ध्यान धरो बलिदानों का <br>
यह दिया बुझे नहीं.....</p>
<p dir="ltr">जिसने दासता की बेड़ियां काटी,<br>
उनकी नेताओं ने जड़े काटी,<br>
कड़ी से कड़ी सजाऐं काटी,<br>
ध्येय था स्वतंत्र हो स्वमाटी,<br>
ध्यान धरो उन वीरों का,<br>
यह दिया बुझे नहीं.....</p>
<p dir="ltr">इतिहास बनाया आक्रांताओं को,<br>
खूब छला महानताओं को,<br>
ध्यान धरो उन महानों को,<br>
यह दिया दिया बुझे नहीं....</p>
<p dir="ltr"> यह दिया स्वतंत्रता का,<br>
यह दिया बुझे नहीं......</p>
<p dir="ltr"> स्वरचित :- मुकेश राठौड़</p>
rathodmukesh143@blogspot. comhttp://www.blogger.com/profile/04207178796796097295noreply@blogger.com1tag:blogger.com,1999:blog-4657036372567274793.post-34445511445070568092018-09-24T21:56:00.001-07:002018-09-26T23:42:40.421-07:00खामोशी<p dir="ltr">लेखक कहे लेखनी से,<br>
क्या करेगी तु अगर,<br>
मैं खामोश हो गया,<br>
क्या पता काल का ,<br>
कल मैं खामोश हो गया,</p>
<p dir="ltr">लेखनी कहे लेखक से,<br>
कर दूंगी हर शब्द अमर,<br>
गर तु खामोश हो गया,<br>
भर दूंगी अश्रुताल,<br>
गर तु खामोश हो गया,</p>
<p dir="ltr">साथ दूंगी तेरा ,<br>
काल के कपाल तक,<br>
बन जाऊँगी ज्ञानदीप,<br>
गर घना अंधेरा छा गया,<br>
भर दूंगी अश्रुताल,<br>
गर तु खामोश हो गया,</p>
<p dir="ltr">खामोशी की चोट ये गहरी,<br>
लील जायेगी अंतर्मन तक,<br>
याद रखेगी दुनिया,<br>
बात "मुकेश"की कालांतर तक,</p>
<p dir="ltr">स्वरचित :- मुकेश राठौड़</p>
rathodmukesh143@blogspot. comhttp://www.blogger.com/profile/04207178796796097295noreply@blogger.com3tag:blogger.com,1999:blog-4657036372567274793.post-51621382643063379052018-09-24T19:09:00.001-07:002018-09-26T23:42:40.428-07:00यादें<p dir="ltr">वो बचपन के खेल कैसे याद बन गये,<br>
वो रेत के घरौंदे कैसे आज ढह गये,</p>
<p dir="ltr"> याद आता है बचपन सुहाना,<br>
वो खेल खेल में दोस्तों से लड़ जाना, </p>
<p dir="ltr">न जाने कहाँ छुट गये वो प्यार के तराने,<br>
बस यादों में छिप गये मेरे बचपन के अफसाने,</p>
<p dir="ltr">नुक्कड़ के झगड़े अब मुस्कान लाते है,<br>
दोस्तों के संग बीते हर पल याद आते है,</p>
<p dir="ltr">कितना मासूम था वो बचपन का जमाना, <br>
दो पल झगड़ा दो पल में मान जाना, </p>
<p dir="ltr">यादें कुछ कह नहीं पाती वो बस दिल पसीज जाती है,<br>
जब भी यादें जवाब मांगती है आंखों को रोता पाती है,</p>
<p dir="ltr">होठों पर मुस्कान आंखों को नम कर देती है,<br>
यादें वो अहसास है जो जिंदगी को थामे रखती है,</p>
<p dir="ltr"> <br>
स्वरचित:-मुकेश राठौड़</p>
rathodmukesh143@blogspot. comhttp://www.blogger.com/profile/04207178796796097295noreply@blogger.com5tag:blogger.com,1999:blog-4657036372567274793.post-24101801828475616252018-09-24T09:04:00.001-07:002018-09-26T23:42:40.416-07:00उम्र और मौत<p dir="ltr"></p>
<p dir="ltr">हे उम्र तु सुन जरा,<br>
दो पल ठहर रिश्ते निभा लूँ जरा,<br>
जिसने मुझे जनम दिया<br>
पाल पोष कर बड़ा किया,<br>
उनको याद कर लूँ जरा,<br>
हे उम्र तु सुन जरा,<br>
दो पल ठहर रिश्ते निभा लूँ जरा,</p>
<p dir="ltr">जिनसे मेरी यारी थी,<br>
कुछ यादें बहुत प्यारी थी,<br>
उनसे आखिरी मुलाकात कर लूँ जरा<br>
हे उम्र तु सुन जरा,<br>
दो पल ठहर रिश्ते निभा लूँ जरा,</p>
<p dir="ltr">जिसको आधा अंग सौंपकर,<br>
अर्धांगिनी स्वीकारा,<br>
अंतिम बार उसकी मांग सजा लूँ जरा,<br>
हे उम्र तु सुन जरा<br>
दो पल ठहर रिश्ते निभा लूँ जरा,</p>
<p dir="ltr">सारी उम्र तो भटकता रहा<br>
बनावटी उसूलों पर,<br>
आज चलूंगा साथ तेरे,<br>
तु ले चल चाहे चीता के फूलों पर<br>
हे उम्र तु सुन जरा<br>
दो पल ठहर रिश्ते निभा लूँ जरा..........</p>
<p dir="ltr">स्वरचित:- मुकेश राठौड़</p>
rathodmukesh143@blogspot. comhttp://www.blogger.com/profile/04207178796796097295noreply@blogger.com4