हे उम्र तु सुन जरा,
दो पल ठहर रिश्ते निभा लूँ जरा,
जिसने मुझे जनम दिया
पाल पोष कर बड़ा किया,
उनको याद कर लूँ जरा,
हे उम्र तु सुन जरा,
दो पल ठहर रिश्ते निभा लूँ जरा,
जिनसे मेरी यारी थी,
कुछ यादें बहुत प्यारी थी,
उनसे आखिरी मुलाकात कर लूँ जरा
हे उम्र तु सुन जरा,
दो पल ठहर रिश्ते निभा लूँ जरा,
जिसको आधा अंग सौंपकर,
अर्धांगिनी स्वीकारा,
अंतिम बार उसकी मांग सजा लूँ जरा,
हे उम्र तु सुन जरा
दो पल ठहर रिश्ते निभा लूँ जरा,
सारी उम्र तो भटकता रहा
बनावटी उसूलों पर,
आज चलूंगा साथ तेरे,
तु ले चल चाहे चीता के फूलों पर
हे उम्र तु सुन जरा
दो पल ठहर रिश्ते निभा लूँ जरा..........
स्वरचित:- मुकेश राठौड़
वाह बेहतरीन रचना भाई
ReplyDeleteबहुत ही सुन्दर और भावपूर्ण रचना
ReplyDeletevery nice poem.... memorable.. If someone want read any perosnality related articles, business strategies... Please visit chandeldiary.blogspot.com
ReplyDeletePlease Please Please
कहाँ रुकी है ये उम्र ... वक़्त नहीं रिक्त ...
ReplyDeleteकराने होते हैं पल उम्र से ...
भावपूर्ण ...