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यादें

वो बचपन के खेल कैसे याद बन गये,
वो रेत के घरौंदे कैसे आज ढह गये,

याद आता है बचपन सुहाना,
वो खेल खेल में दोस्तों से लड़ जाना,

न जाने कहाँ छुट गये वो प्यार के तराने,
बस यादों में छिप गये मेरे बचपन के अफसाने,

नुक्कड़ के झगड़े अब मुस्कान लाते है,
दोस्तों के संग बीते हर पल याद आते है,

कितना मासूम था वो बचपन का जमाना,
दो पल झगड़ा दो पल में मान जाना,

यादें कुछ कह नहीं पाती वो बस दिल  पसीज जाती है,
जब भी यादें जवाब मांगती है आंखों को रोता पाती है,

होठों पर मुस्कान आंखों को नम कर देती है,
यादें वो अहसास है जो जिंदगी को थामे रखती है,

                          
                               स्वरचित:-मुकेश राठौड़

5 comments:

  1. बहुत ही सुन्दर यादें

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  2. बचपन और उसकी यादें दिल में रहती हैं और हर पल गुदगुदाती हैं दिल को ...
    अच्छी रचना ...

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  3. वाह बहुत शानदार रचना

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क्षणिक जीवन

क्षण बड़ा निर्दयी होता है मौत की आगोश में सोता है अपने ही दम पर जीता है अपने ही दम पर मरता है जो जी ले हर क्षण को क्षण उसका ही होता है...

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