वो बचपन के खेल कैसे याद बन गये,
वो रेत के घरौंदे कैसे आज ढह गये,
याद आता है बचपन सुहाना,
वो खेल खेल में दोस्तों से लड़ जाना,
न जाने कहाँ छुट गये वो प्यार के तराने,
बस यादों में छिप गये मेरे बचपन के अफसाने,
नुक्कड़ के झगड़े अब मुस्कान लाते है,
दोस्तों के संग बीते हर पल याद आते है,
कितना मासूम था वो बचपन का जमाना,
दो पल झगड़ा दो पल में मान जाना,
यादें कुछ कह नहीं पाती वो बस दिल पसीज जाती है,
जब भी यादें जवाब मांगती है आंखों को रोता पाती है,
होठों पर मुस्कान आंखों को नम कर देती है,
यादें वो अहसास है जो जिंदगी को थामे रखती है,
स्वरचित:-मुकेश राठौड़
बहुत ही सुन्दर यादें
ReplyDeleteNice
ReplyDeleteबचपन और उसकी यादें दिल में रहती हैं और हर पल गुदगुदाती हैं दिल को ...
ReplyDeleteअच्छी रचना ...
Mind blowing 👍
ReplyDeleteवाह बहुत शानदार रचना
ReplyDelete