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क्षणिक जीवन

क्षण बड़ा निर्दयी होता है
मौत की आगोश में सोता है
अपने ही दम पर जीता है
अपने ही दम पर मरता है

जो जी ले हर क्षण को
क्षण उसका ही होता है
हर क्षण जीने की हौसला
कहाँ हर जन में होता है

जी लो जी भर जिंदगी
क्यों क्षणिक गमों को रोता है
क्षण भंगुर है जीवन तेरा
क्यों इतने सपने संजोता है

क्षणों में टूटा हर सपना
क्यों टूटे शीशे बटोरता है
जी ले संग अपनो के
क्यों बांह गैरों की टटोलता है

क्षण में उड़ते प्राण पखेरू
कर्म सफल कर लो अपने
कुछ ना जाएगा संग तेरे
यहीं रह जाएंगे सारे सपने

हर क्षण बड़ा अनमोल है
इसका ना कोई तौल है
बना ले सद्व्यवहार सबसे
यही "मुकेश" के अंतर बोल है


स्वरचित :- मुकेश राठौड़

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क्षणिक जीवन

क्षण बड़ा निर्दयी होता है मौत की आगोश में सोता है अपने ही दम पर जीता है अपने ही दम पर मरता है जो जी ले हर क्षण को क्षण उसका ही होता है...

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