है आगमन की आस तेरे,
कब आओगी पास मेरे,
नैन तरसे दरश को तेरे,
कब आओगी पास मेरे,
चौका सूना बिन तेरे,
तके आगमन की राह तेरे,
घर मंदिर के कंगूरे,
पड़ोसी भी पूछ पूछ हारे,
क्या दूं उनको जवाब मेरे,
है आगमन की आस तेरे,
कब आओगी पास मेरे
घर आंगन सूना बिन तेरे,
बहुत रह लिए अब मां के डेरे,
आ आ जाओ अब पास मेरे,
है आगमन की आस तेरे,
थक चूका हूं कर घर काम तेरे,
अब तो रोम रोम तुझे पुकारे,
है अआगमन की आस तेरे,
आ जाओ अब पास मेरे,
सांझ ढले जब घर को जाऊं,
हर कोना मुझे चिढ़ाये,
हर पल तेरी याद सताये,
लेखन में फिर मन बहलायें,
लेखन में फिर इतने रम गये,
याद में तेरी हम कवि बन गये,
पर हर लेख अधूरे बिन तेरे,
अब तो दिन महीने बीत गये,
अब तो आ जाओ पास मेरे,
है आगमन की आस तेरे,
स्वरचित :- मुकेश राठौड़
कब आओगी पास मेरे,
नैन तरसे दरश को तेरे,
कब आओगी पास मेरे,
चौका सूना बिन तेरे,
तके आगमन की राह तेरे,
घर मंदिर के कंगूरे,
पड़ोसी भी पूछ पूछ हारे,
क्या दूं उनको जवाब मेरे,
है आगमन की आस तेरे,
कब आओगी पास मेरे
घर आंगन सूना बिन तेरे,
बहुत रह लिए अब मां के डेरे,
आ आ जाओ अब पास मेरे,
है आगमन की आस तेरे,
थक चूका हूं कर घर काम तेरे,
अब तो रोम रोम तुझे पुकारे,
है अआगमन की आस तेरे,
आ जाओ अब पास मेरे,
सांझ ढले जब घर को जाऊं,
हर कोना मुझे चिढ़ाये,
हर पल तेरी याद सताये,
लेखन में फिर मन बहलायें,
लेखन में फिर इतने रम गये,
याद में तेरी हम कवि बन गये,
पर हर लेख अधूरे बिन तेरे,
अब तो दिन महीने बीत गये,
अब तो आ जाओ पास मेरे,
है आगमन की आस तेरे,
स्वरचित :- मुकेश राठौड़
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