जाने कौन तृष्णा थी मन की
मंत्र मुग्ध हुआ तुम्हें पाकर
जीवन सुशोभित किया मेरा
जीवन संगिनी बनकर,
सदियों से था प्रतिक्षीत जीवन,
तृप्त कर दिया तुमने आकर
भर अश्रुधारा नयनन में,
प्रवेश किया इस जीवन में,
भ्रम के अंधियारे थे जीवन में
दूर हुए अब भ्रम के अंधियारे,
सास्वत साथ तुम्हारा पाकर
साथ अपना देकर मन को
तृप्त कर दिया तुमने आकर
सदा रहो मेरे अंतर्मन में
तुमसे ही प्रीत है जीवन में
हुआ धन्य जीवन तुमको पाकर
जब आयी तुम मेरे जीवन में
गूंज उठी दशों दिशाएं,
भर आये रंग चमन में,
जब तक सांस है मेरे इस तन में
सदा रहूंगा साथ इस जीवन में
स्वरचित :- मुकेश राठौड़
सुंदर रचना
ReplyDeleteAti sunder rachna
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