क्या परिवर्तन हुआ है कल में और आज में,
कल भी नारी जलती थी सति प्रथा की आग में,
आज भी नारी जलती है दहेज प्रथा की आग में,
क्या परिवर्तन हुआ है कल में और आज में,
कल भी युद्ध होते थे सत्ता की चाह में,
आज भी लड़ते है लोग सत्ता की चाह में,
क्या परिवर्तन हुआ है कल में और आज में,
कल भी होता था चिर हरण भरे दरबार में
आज भी होता है वस्त्र हरण बीच बाजार में,
क्या परिवर्तन हुआ है कल में और आज में,
स्वरचित :- मुकेश राठौड़
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