घोर अंधकार हो
चल रही बयार हो
आज द्वार द्वार पर
यह दिया बुझे नहीं.....
अनगिनत बलिदानों से सजा
स्वतंत्रता का यह दिया,
लो प्रण हर पल यही
यह दिया बुझे नहीं....
आँधियाँ उठा रहीं,
हलचलें मचा रहीं,
दूर अंधकार हो,
ना कोई क्लेश हो,
क्षुद्र जीत हार पर,
यह दिया बुझे नहीं.....
यह दिया स्वतंत्रता का
शहीदों के खून से जला
नेताओं ने खूब छला,
ध्यान धरो बलिदानों का
यह दिया बुझे नहीं.....
जिसने दासता की बेड़ियां काटी,
उनकी नेताओं ने जड़े काटी,
कड़ी से कड़ी सजाऐं काटी,
ध्येय था स्वतंत्र हो स्वमाटी,
ध्यान धरो उन वीरों का,
यह दिया बुझे नहीं.....
इतिहास बनाया आक्रांताओं को,
खूब छला महानताओं को,
ध्यान धरो उन महानों को,
यह दिया दिया बुझे नहीं....
यह दिया स्वतंत्रता का,
यह दिया बुझे नहीं......
स्वरचित :- मुकेश राठौड़
अनगिनत बलिदानों से सजा
ReplyDeleteस्वतंत्रता का यह दिया,
लो प्रण हर पल यही
यह दिया बुझे नहीं.... बेहतरीन रचना