लेखक कहे लेखनी से,
क्या करेगी तु अगर,
मैं खामोश हो गया,
क्या पता काल का ,
कल मैं खामोश हो गया,
लेखनी कहे लेखक से,
कर दूंगी हर शब्द अमर,
गर तु खामोश हो गया,
भर दूंगी अश्रुताल,
गर तु खामोश हो गया,
साथ दूंगी तेरा ,
काल के कपाल तक,
बन जाऊँगी ज्ञानदीप,
गर घना अंधेरा छा गया,
भर दूंगी अश्रुताल,
गर तु खामोश हो गया,
खामोशी की चोट ये गहरी,
लील जायेगी अंतर्मन तक,
याद रखेगी दुनिया,
बात "मुकेश"की कालांतर तक,
स्वरचित :- मुकेश राठौड़
वाह शानदार रचना
ReplyDeleteबेहतरीन
ReplyDeleteशानदार रचना..
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