Followers

शरद ऋतु

ऋतु शरद मन मोहिनी
मम मन हरषाये,
कान्हा की सांवली सूरत,
प्रीत उमंग जगाये,

निशा शरद पूनम की धौली
रास रचाऊं सांवरे कान्हा संग,
जाकर संग गोपीयों के,
मन में भरे उल्लास के रंग

प्रकृति भी मनमोहक छटा
बिखरे ऋतु शरद में अपनी,
धुन बंशी की सुनकर,
महक उठे मस्ती में अपनी

फूले कलियां भंवरे गाए
धुन बंशी की सबको लुभाये,
पशु पक्षी भी दौड़े आए
संग कान्हा के मन बहलाये

मंद मंद पवन के झोंकों से,
प्रकृति नव यौवन पर ईठलाये,
मधुर मधुर कलरव से,
मधुवन को चहकाए,

सरीता बहे सर सर सर
झरने झरे झर झर झर
वन कानन भरे सुर
बहे पवन सर सर सर

स्वरचित :- मुकेश राठौड़

No comments:

Post a Comment

क्षणिक जीवन

क्षण बड़ा निर्दयी होता है मौत की आगोश में सोता है अपने ही दम पर जीता है अपने ही दम पर मरता है जो जी ले हर क्षण को क्षण उसका ही होता है...

Poems writter